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भव॑तन्नः॒ सम॑नसौ॒ सचे॑तसावरे॒पसौ॑। मा य॒ज्ञꣳ हि॑ꣳसिष्टं॒ मा य॒ज्ञप॑तिं जातवेदसौ शि॒वौ भ॑वतम॒द्य नः॑ ॥६० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भव॑तम्। नः॒। सम॑नसा॒विति॒ सऽम॑नसौ। सचे॑तसा॒विति॒ सऽचे॑तसौ। अ॒रे॒पसौ॑। मा। य॒ज्ञम्। हि॒ꣳसि॒ष्ट॒म्। मा। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। जा॒त॒वे॒द॒सा॒विति॑ जातऽवेदसौ। शि॒वौ। भ॒व॒त॒म्। अ॒द्य। नः॒ ॥६० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:60


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सब को चाहिये कि विद्या देने लिये आप्त विद्वानों की प्रार्थना करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विवाह किये हुए स्त्रीपुरुषो ! तुम दोनों (नः) हम लोगों के लिये (समनसौ) एक से विचार और (सचेतसौ) एक से बोधवाले (अरेपसौ) अपराधरहित (भवतम्) हूजिये। (यज्ञम्) प्राप्त होने योग्य धर्म को (मा) मत (हिंसिष्टम्) बिगाड़ो और (यज्ञपतिम्) उपदेश से धर्म के रक्षक पुरुष को (मा) मत मारो। (अद्य) आज (नः) हमारे लिये (जातवेदसौ) सम्पूर्ण विज्ञान को प्राप्त हुए (शिवौ) मङ्गलकारी (भवतम्) हूजिये ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषजनों को चाहिये कि सत्य उपदेश और पढ़ाने के लिये सब विद्याओं से युक्त, प्रगल्भ, निष्कपट, धर्मात्मा, सत्यप्रिय पुरुषों की नित्य प्रार्थना और उन की सेवा करें और विद्वान् लोग सब के लिये ऐसा उपदेश करें कि जिससे सब धर्माचरण करनेवाले हो जावें ॥६० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सर्वैर्विद्याप्रदानायाप्ता विद्वांसः प्रार्थनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(भवतम्) (नः) अस्मभ्यम् (समनसौ) समानविचारौ (सचेतसौ) समानसंज्ञानौ (अरेपसौ) अनपराधिनौ (मा) (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यं धर्मम् (हिंसिष्टम्) हिंस्यातम् (मा) (यज्ञपतिम्) उपदेशेन धर्मरक्षकम् (जातवेदसौ) उत्पन्नाऽखिलविज्ञानौ (शिवौ) मङ्गलकारिणौ (भवतम्) (अद्य) (नः) अस्मभ्यम्। [अयं मन्त्रः शत०७.१.१.३८ व्याख्यातः] ॥६० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विवाहितौ स्त्रीपुरुषौ ! युवां नः समनसौ सचेतसावरेपसौ भवतम्। यज्ञं मा हिंसिष्टं यज्ञपतिं मा हिंसिष्टम्। अद्य नो जातवेदसौ शिवौ भवतम् ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषजनैः सत्योपदेशायाध्यापनाय पूर्णविद्याः प्रगल्भा निष्कपटा आप्ता नित्यं प्रार्थनीयाः, विद्वांसस्तु सर्वेभ्य एवमुपदिशेयुर्यतः सर्वे धर्माचारिणः स्युः ॥६० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्री-पुरुषांनी सत्य उपदेश करणाऱ्या, सर्व विद्यांनी युक्त, प्रगल्भ, निष्कपट, धर्मात्मा, सत्यप्रिय अशा पुरुषांची सदैव प्रार्थना करावी व सेवा करावी. विद्वान लोकांनी सर्वांना उपदेश करून धर्माचरणी बनवावे.